कोलकाता के प्रसिद्ध बोल्ला काली मंदिर में पशुओं की बलि पर रोक
हाई कोर्ट ने काली पूजा पर पशु बलि पर रोक लगाने से किया इनकार
कोलकाता, 1 नवंबर - काली पूजा के अवसर पर कोलकाता के प्रसिद्ध बोल्ला काली मंदिर में पशुओं की बलि पर रोक लगाने की याचिका पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया। हाई कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि धार्मिक प्रथाएँ पूर्वी भारत में उत्तर भारत से भिन्न होती हैं, और इन पर रोक लगाना सही नहीं होगा।
याचिका में, अखिल भारतीय कृषि गो सेवक संघ ने काली पूजा पर मंदिर में 10,000 बकरियों और भैंसों की बलि पर रोक की माँग की थी। याचिकाकर्ताओं ने इसे रोकने के लिए तत्काल राहत की माँग की, लेकिन जस्टिस विश्वजीत बसु और अजय कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने बिना विस्तृत सुनवाई के कोई अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया।
अदालत का तर्क: धार्मिक प्रथाएँ और खान-पान की आदतें अलग हैं अदालत ने स्पष्ट किया कि धार्मिक परंपराओं में विविधता को देखते हुए, पूरे पूर्वी भारत को शाकाहारी बनाना मुमकिन नहीं है। जस्टिस बसु ने मजाकिया लहजे में कहा, “अगर कोई पूर्वी भारत को शाकाहारी बनाने का लक्ष्य रख रहा है, तो ये संभव नहीं है, क्योंकि यहाँ मांसाहारी खान-पान की आदतें गहरी हैं।”
याचिकाकर्ताओं ने भारतीय पशु कल्याण बोर्ड को पशु बलि पर तत्काल प्रतिबंध के निर्देश देने की माँग की थी। पीठ ने इस मुद्दे पर कहा कि “धारा 28 (पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960) के अनुसार, किसी धार्मिक रीति-रिवाज के तहत पशुओं की बलि को अपराध नहीं माना जाएगा।”
बोल्ला काली मंदिर: आस्था और परंपरा का केंद्र बोल्ला गाँव, जो बालुरघाट शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित है, में हर साल काली पूजा के दौरान बड़े पैमाने पर बलि दी जाती है। इस पूजा में हजारों श्रद्धालु माँ काली के दर्शन करने के लिए आते हैं। इस दौरान तीन दिवसीय मेला भी लगता है, जिसमें विभिन्न प्रथाओं और मान्यताओं को निभाया जाता है।
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