बजरंग दल नेता नितिन भुजवा को नाबालिग से अपराध का दोषी ठहराया, अदालत ने सुनाई 10 साल की सजा!
नितिन भुजवा: भगवा के पीछे छुपा सच, 9 साल बाद मिला इंसाफ!
कभी-कभी ज़िंदगी ऐसे मोड़ पर खड़ी होती है, जहां हर सवाल का जवाब हमें चौंका देता है। आप किसी को उनके पहनावे, उनकी बातों, या उनके काम से पहचानते हैं, लेकिन अंदर का सच कुछ और ही होता है। ऐसा ही कुछ हुआ उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में, जहां बजरंग दल के नगर संयोजक नितिन भुजवा के खिलाफ 9 साल पहले दर्ज हुआ एक मामला, आज इंसाफ के पड़ाव पर पहुंचा।
कहानी जो सोचने पर मजबूर कर देगी
2015 की बात है। दिसंबर का वही महीना, जब ठंड के साथ-साथ एक परिवार की जिंदगी में एक तूफान आ गया। उनकी 15 साल की मासूम बेटी अचानक लापता हो गई। उस लड़की को अगवा किया गया, और उसके बाद जिस घिनौनी हरकत को अंजाम दिया गया, वो सुनकर किसी की भी रूह कांप जाए।
आरोप लगे नितिन भुजवा पर, जो न सिर्फ बजरंग दल का नेता था, बल्कि भगवा कपड़े पहनकर खुद को धर्म और संस्कृति का रक्षक कहता था। 9 साल तक केस चलता रहा। परिवार इंसाफ के लिए लड़ता रहा। और अब, बहराइच की पॉक्सो कोर्ट ने फैसला सुनाया – नितिन को 10 साल की जेल और ₹80,000 का जुर्माना।
क्या भगवा का मतलब संस्कार है?
यह सवाल हर किसी के मन में उठता है। माथे पर चंदन का टीका और भगवा वस्त्र क्या किसी के संस्कार और सोच की गारंटी हो सकते हैं? शायद नहीं। नितिन जैसे लोग समाज के उस हिस्से का काला चेहरा हैं, जो धर्म और आस्था के नाम पर अपने अपराध छुपाने की कोशिश करते हैं।
सोशल मीडिया पर लोग भड़क उठे हैं। कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने ट्वीट किया, "ये घटना सिर्फ नाबालिग बच्ची के साथ हुए अपराध की नहीं है, ये उन सबकी सच्चाई उजागर करती है, जो समाज में 'संस्कारी' बनकर घूमते हैं।"
अब सवाल आपसे,
क्या समाज में ऐसे लोगों को पहचानना मुश्किल है? क्या हम अपने आसपास छुपे भेड़ियों को देख पा रहे हैं? ये सिर्फ एक नितिन भुजवा की बात नहीं है। ये सवाल हमारे समाज के ताने-बाने पर है।
जरा सोचिए, अगर 9 साल की लड़ाई के बाद इंसाफ मिलता है, तो कितने परिवार इस लड़ाई में हार मान लेते होंगे? क्या 10 साल की सजा ऐसे लोगों के लिए काफी है?
आपकी राय क्या है? कमेंट में जरूर बताइए।