जहानाबाद में छुआछूत का दर्दनाक उदाहरण: पानी पीने पर महादलित सफाईकर्मी की हत्या। जानें कैसे समाज

जहानाबाद में छुआछूत का दर्दनाक उदाहरण: पानी पीने पर महादलित सफाईकर्मी की हत्या। जानें कैसे समाज

बिहार में छुआछूत का दर्दनाक चेहरा: महादलित सफाईकर्मी की हत्या से मचा आक्रोश


जहानाबाद (बिहार):

जहां देश आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, वहीं कुछ जगहों पर जातिवाद और छुआछूत की मानसिकता समाज को पीछे खींच रही है। बिहार के जहानाबाद जिले में रविवार को एक महादलित सफाईकर्मी की हत्या ने इंसानियत को झकझोर कर रख दिया। यह घटना न केवल कष्टदायक है, बल्कि यह सोचने पर मजबूर करती है कि छुआछूत का जहर आज भी समाज में जिंदा है।



कैसे शुरू हुआ विवाद?


नगर परिषद में सफाईकर्मी के तौर पर कार्यरत लल्लूराम अपने काम के दौरान प्यास लगने पर पास की एक चाय की दुकान पर पहुंचे। उन्होंने दुकान में रखे जग से पानी पिया। दुकानदार राजेश कुमार ने यह देखा और गुस्से में आकर आरोप लगाया कि लल्लूराम ने पानी को दूषित कर दिया। इस बात पर विवाद इतना बढ़ गया कि दुकानदार ने लल्लूराम पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया।


लल्लूराम के सिर पर गंभीर चोटें आईं, और वह वहीं बेहोश होकर गिर पड़े। मौके पर मौजूद अन्य सफाईकर्मियों ने उन्हें आनन-फानन में सदर अस्पताल पहुंचाया, लेकिन उनकी जान नहीं बचाई जा सकी।


हत्या के बाद मचा बवाल


लल्लूराम की मौत से उनके समाज के लोग आक्रोशित हो उठे। गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने शव को लेकर पटना नेशनल हाईवे-83 पर जाम लगा दिया। चारों ओर हंगामे का माहौल बन गया। पुलिस ने स्थिति संभालने की कोशिश की और बड़ी मुश्किल से लोगों को शांत कराया।


पुलिस की कार्रवाई और आगे की जांच


पुलिस ने मृतक के परिवार की शिकायत पर दुकानदार राजेश कुमार के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है। पुलिस की निगरानी में राजेश का इलाज भी चल रहा है, क्योंकि गुस्साई भीड़ ने उस पर हमला कर दिया था। थानाध्यक्ष दिवाकर विश्वकर्मा ने बताया कि मामले की गहन जांच की जा रही है।


समाज के लिए संदेश


यह घटना केवल एक हत्या नहीं, बल्कि समाज के उस चेहरे को उजागर करती है जो आज भी जातिवाद और छुआछूत जैसी बुराइयों में जकड़ा हुआ है। यह सोचने का वक्त है कि क्या सिर्फ कानून से इस समस्या का समाधान हो सकता है, या हमें अपनी सोच और मानसिकता को भी बदलने की जरूरत है?


आज के दौर में ऐसी घटनाएं समाज को आइना दिखाने का काम करती हैं। जब तक छुआछूत और जातिवाद खत्म नहीं होते, तब तक समानता का सपना अधूरा ही रहेगा।

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