1957 के टॉर्चर मामले में पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट बरी: कोर्ट ने सबूतों की कमी बताई

टॉर्चर मामले में सबूतों की कमी: पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को मिली राहत

1957 के टॉर्चर मामले में पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट बरी: कोर्ट ने सबूतों की कमी बताई

संजीव भट्ट को क्यों किया गया बरी?

गुजरात के पोरबंदर कोर्ट ने पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को 1957 के हिरासत में टॉर्चर मामले में सबूतों की कमी के चलते बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष संजीव भट्ट के खिलाफ लगाए गए आरोप साबित करने में असफल रहा। इसके साथ ही, एक अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए जरूरी सरकारी मंजूरी भी नहीं ली गई थी।


मामले का इतिहास क्या है?

यह मामला 1990 का है, जब संजीव भट्ट अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात थे। बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान सांप्रदायिक दंगों के बीच उन्होंने 150 लोगों को हिरासत में लिया था। इन कैदियों में से एक, प्रभुदास वसना की हिरासत में मौत हो गई थी। भट्ट पर आरोप था कि उनके टॉर्चर के कारण यह मौत हुई। इसी मामले में उन्हें 2019 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।


अन्य विवाद और सजा

संजीव भट्ट का नाम 1996 के एक और विवाद में भी आया, जिसमें उन्हें राजस्थान के वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित को ड्रग्स के झूठे मामले में फंसाने का दोषी पाया गया। इस केस में भी उन्हें 20 साल की सजा सुनाई गई।


2002 दंगों पर बयान

संजीव भट्ट 2002 के गुजरात दंगों के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर गंभीर आरोप लगाकर चर्चा में आए थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर दावा किया था कि मोदी दंगों में शामिल थे।


पब्लिक की राय और सवाल

संजीव भट्ट को बरी किए जाने पर लोग न्याय प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं। क्या यह फैसला न्याय का प्रतीक है या कोई दबाव? आप अपनी राय जरूर साझा करें।

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