पूर्व जस्टिस रोहिंटन नरीमन का खुलासा: बाबरी केस में साजिश और फैसले पर सवाल

बाबरी केस पर जस्टिस नरीमन ने उठाए बड़े सवाल"

बाबरी केस पर जस्टिस नरीमन ने उठाए बड़े सवाल"

पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज रोहिंटन नरीमन ने बाबरी विध्वंस केस में फैसले पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दखल के बावजूद वरिष्ठ नेताओं को बरी कर दिया गया, और इस मामले में न्याय प्रक्रिया में गंभीर खामियां रहीं। नरीमन ने यह बयान एक लेक्चर में दिया, जिसमें उन्होंने भारतीय संविधान और धर्मनिरपेक्षता पर अपने विचार साझा किए।


मामले की पृष्ठभूमि


1992 में बाबरी विध्वंस के बाद दो एफआईआर दर्ज की गईं। एक एफआईआर कार्यकर्ताओं के खिलाफ थी, जबकि दूसरी बीजेपी नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और अन्य पर, जिन पर कार्यकर्ताओं को उकसाने का आरोप था। 2017 में जस्टिस नरीमन ने आर्टिकल 142 के तहत ट्रायल को दोबारा शुरू करने का आदेश दिया।


उन्होंने हैरानी जताई कि कैसे इस केस में 25 वर्षों तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने यह भी बताया कि सुनवाई के दौरान एफआईआर के मामलों को अलग-अलग रखा गया, जिससे साजिश के आरोप दब गए।


आरोपियों को बरी करने पर टिप्पणी


2020 में सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी नेताओं को बरी कर दिया। जज ने कहा कि साजिश के आरोप साबित नहीं हुए। इसके बाद उस जज को यूपी सरकार ने उप-लोकायुक्त नियुक्त कर दिया। जस्टिस नरीमन ने इसे न्याय प्रक्रिया की विफलता और संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ बताया।


न्याय और धर्मनिरपेक्षता पर विचार


नरीमन ने एएसआई सर्वे और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद माना कि विवादित स्थल पर मंदिर का कोई स्पष्ट सबूत नहीं था। इसके बावजूद केवल वैकल्पिक भूमि देकर मस्जिद का पुनर्निर्माण नहीं किया गया।


निष्कर्ष

जस्टिस नरीमन ने न्यायिक व्यवस्था और सत्तारूढ़ संस्थाओं के संबंधों पर गहरी चिंता व्यक्त की। उनका यह बयान भारत की न्यायिक प्रणाली और धर्मनिरपेक्षता पर एक बड़ी बहस को जन्म दे सकता है।

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