कानूनी सौदे पर हंगामा: मुस्लिम परिवार को मकान बेचने पर कॉलोनी में बवाल
मुरादाबाद में मुस्लिम परिवार को मकान बेचने पर बवाल: क्या समाज में नफरत की जड़ें और गहरी हो रही हैं?
क्या है मामला?
मुरादाबाद की पॉश टीडीआई सिटी कॉलोनी, जहां करीब 450 हिंदू परिवार रहते हैं, अचानक चर्चा में आ गई है। हाल ही में कॉलोनी के निवासी डॉ. अशोक बजाज ने अपना मकान डॉ. इकरा चौधरी (मुस्लिम समुदाय से) को बेच दिया। सौदा पूरी तरह कानूनी था, लेकिन कॉलोनी वासियों ने इसे सांप्रदायिक और सामाजिक संरचना पर "आघात" बताते हुए इसका कड़ा विरोध शुरू कर दिया।
कॉलोनी की महिलाओं ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया और बैनरों पर लिखा, "अशोक बजाज हाय हाय, अपना मकान वापस लो।"
संपत्ति विवाद या सांप्रदायिक नफरत?
कॉलोनी वासियों का दावा है कि कॉलोनी बनाते वक्त सहमति बनी थी कि यहां सिर्फ हिंदू परिवार रहेंगे। सोनिया गुप्ता, जो प्रदर्शन में शामिल थीं, ने कहा, "यह सिर्फ मकान बेचने का मामला नहीं है। यह हमारे समाज और हमारी सुरक्षा से जुड़ा है।
हालांकि, सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक संपत्ति विवाद है या मुस्लिम समुदाय के प्रति बढ़ती असहिष्णुता और नफरत की तस्वीर? विरोध करने वालों ने साफ कहा कि वे मुस्लिम परिवार को यहां नहीं रहने देंगे। उनका तर्क है कि इससे कॉलोनी का "सांस्कृतिक ढांचा" खतरे में पड़ जाएगा।
कानून बनाम सामाजिक बंदिशें
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ई) के तहत हर नागरिक को देश में कहीं भी बसने और संपत्ति खरीदने का अधिकार है। लेकिन क्या समाज के अंदर बनाए गए नियम इन संवैधानिक अधिकारों से ऊपर हो सकते हैं?
प्रशासन ने मामले में दखल दिया है। मुरादाबाद के डीएम ने कहा, "हम दोनों पक्षों से बातचीत कर समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं। हमारा प्रयास है कि इस मामले को शांति और सहमति से सुलझाया जाए।
मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती नफरत का नया अध्याय?
यह विवाद महज मुरादाबाद की कॉलोनी तक सीमित नहीं है। हाल के वर्षों में ऐसी घटनाएं बार-बार सामने आई हैं, जहां मुस्लिम परिवारों को हिंदू बहुल इलाकों में बसने से रोका गया है। चाहे वह उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर हो या देश का कोई और हिस्सा, यह घटनाएं एक बड़े और चिंताजनक सवाल को जन्म देती हैं – क्या हमारे समाज में धार्मिक नफरत का स्तर लगातार बढ़ रहा है?
ऐसे विरोध संविधान के मूल्यों और "विविधता में एकता" के आदर्श को चुनौती देते हैं। यह घटनाएं बताती हैं कि हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां धर्म के नाम पर बंटवारे को सामान्य बनाने की कोशिशें हो रही हैं।
क्या यह चिंता का विषय है?
इस तरह की घटनाएं सिर्फ संपत्ति विवाद नहीं, बल्कि समाज में गहराती सांप्रदायिक खाई की कहानी कहती हैं। क्या समाज का यह रवैया हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर रहा है? और क्या यह घटनाएं आने वाले समय में और बड़े बंटवारे का संकेत हैं?
इस घटना पर आपकी राय क्या है? क्या यह समय समाज में बढ़ती नफरत पर विचार करने का है? हमें कमेंट करके बताएं।