आरक्षण पर नई बहस: क्या पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सही था?
आरक्षण विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला, धर्म पर आधारित कोटा अवैध
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट किया कि आरक्षण का आधार धर्म नहीं हो सकता। यह टिप्पणी पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा मुस्लिम समुदाय की 77 जातियों को ओबीसी में शामिल करने के विवाद पर सुनवाई के दौरान की गई।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: धर्म पर आधारित आरक्षण अवैध
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार के 2010 के फैसले को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा कि आरक्षण केवल धर्म के आधार पर नहीं दिया जा सकता। यह मामला कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले से जुड़ा है, जिसने 2010 में मुस्लिम समुदाय की कई जातियों को ओबीसी सूची में शामिल करने के राज्य सरकार के फैसले को खारिज कर दिया था।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि आरक्षण का आधार पिछड़ापन होना चाहिए, न कि धार्मिक पहचान। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल "मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़ेपन के आधार पर चुनना" समग्र मुस्लिम समुदाय का अपमान है।
सरकार का तर्क: सामाजिक पिछड़ेपन का मामला
पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि ये आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन पर आधारित है। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई जाए, क्योंकि इससे हजारों छात्रों और नौकरी चाहने वालों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि इन 77 जातियों को पिछड़ेपन के आधार पर क्यों और कैसे चुना गया। अदालत ने सरकार को ऐसे वर्गों के सामाजिक और आर्थिक आंकड़े पेश करने का निर्देश दिया, जो यह साबित कर सके कि ये समूह ओबीसी श्रेणी में आने के योग्य हैं।
आरक्षण विवाद का भविष्य
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी को निर्धारित की है, जहां यह तय होगा कि हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाई जाएगी या नहीं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला न केवल आरक्षण नीति, बल्कि देश में सामाजिक न्याय की धारणा को भी प्रभावित कर सकता है।