क्या इस्माइल फारूकी और राम जन्मभूमि के फैसलों में न्याय मिला? जस्टिस नरीमन ने उठाए सवाल
क्या सुप्रीम कोर्ट का राम जन्मभूमि फैसला सच में सबके लिए न्यायपूर्ण था? जस्टिस नरीमन की कड़ी आलोचना!
कभी सोचा है कि एक फैसले से देशभर में कैसे हलचल मच सकती है? 1994 का इस्माइल फारूकी मामला और 2019 का राम जन्मभूमि विवाद ऐसे मामले हैं जिनकी गूंज आज भी सुनाई देती है। जस्टिस नरीमन ने इन फैसलों पर सवाल उठाए और कहा कि इनमें न्याय की बजाय राजनीति हावी रही। क्या इन फैसलों में सच में सभी को न्याय मिला? चलिए, जानते हैं जस्टिस नरीमन ने इन फैसलों को लेकर क्या राय दी है।
1. इस्माइल फारूकी मामला – क्या यह फैसला सेकुलरिज्म के खिलाफ था?
1994 में सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारूकी बनाम भारत सरकार मामले में अयोध्या क्षेत्र अधिग्रहण अधिनियम, 1993 को वैध ठहराया। इस फैसले में 67 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया गया। हालांकि, जस्टिस अहमदी ने इसके खिलाफ असहमति जताई, यह कहते हुए कि यह फैसला धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है। जस्टिस नरीमन ने इस पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि जब कानून और संविधान के तहत धर्मनिरपेक्षता की सुरक्षा नहीं होती, तो इसका मतलब क्या है? क्या इसका मतलब है कि धर्मनिरपेक्षता सिर्फ एक शब्द रह जाता है?
2. राम जन्मभूमि मामला – क्या कोर्ट ने सही फैसला दिया?
2019 में राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विवादित ज़मीन को हिंदू पक्ष को सौंपने का फैसला दिया और मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ ज़मीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी। लेकिन जस्टिस नरीमन ने इस फैसले पर गहरी चिंता जताई। उनका कहना था कि यह फैसला न केवल मुस्लिम समुदाय के अधिकारों की अनदेखी करता है, बल्कि एक ऐतिहासिक स्थल पर फैसला करते वक्त सेकुलरिज्म की भावना को भी नकारता है। जस्टिस नरीमन ने कहा कि जब कोर्ट ने 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस को कानून का उल्लंघन माना, तो फिर इसे पूरी ज़मीन हिंदू पक्ष को क्यों दी गई? क्या यह सच में न्याय का पालन था?
3. एएसआई रिपोर्ट और ऐतिहासिक तथ्य – क्या सब कुछ सही था?
2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया कि बाबरी मस्जिद के नीचे कोई राम मंदिर नहीं था। लेकिन जस्टिस नरीमन ने इस रिपोर्ट को पूरी तरह से नजरअंदाज किए जाने पर सवाल उठाया। उनका कहना था कि कोर्ट ने ऐतिहासिक तथ्यों को सही से न समझते हुए, मुस्लिमों के अधिकारों को अनदेखा कर दिया। 1528 से लेकर 1949 तक मस्जिद में दोनों पक्षों की पूजा का इतिहास रहा, फिर भी कोर्ट ने उसे नजरअंदाज कर दिया। क्या यह सही था?
4. न्याय और सेकुलरिज्म – क्या यह फैसले सच में न्यायपूर्ण थे?
जस्टिस नरीमन ने बार-बार यह सवाल उठाया कि जब भी हिंदू पक्ष ने कानून तोड़ा, तो उसे नजरअंदाज कर दिया गया। उनका कहना था कि इस मामले में सेकुलरिज्म की पूरी तरह अनदेखी हुई और न्याय के बजाय राजनीति का खेल खेला गया। उन्होंने यह भी सवाल उठाया, "क्या यह सच में न्याय था? क्या इसमें सभी पक्षों के अधिकारों का सम्मान हुआ?" जस्टिस नरीमन के मुताबिक, जब एक पक्ष ने लगातार कानून तोड़ा, तो उसे हमेशा बचाया गया और दूसरे पक्ष को नुकसान उठाना पड़ा। क्या यह न्याय का सही रूप था?