मोहन भागवत का मंदिर-मस्जिद विवाद पर बड़ा बयान, संत समाज में मची खलबली. पढ़ें पूरी रिपोर्ट
मोहन भागवत ने क्या कहा?
भागवत ने अपने भाषण में कहा, "जो भी हमारे मंदिर हैं, वो श्रद्धा के प्रतीक हैं और उन्हें सम्मान मिलना चाहिए। लेकिन पुरानी कड़वाहट और विवादों को बार-बार उठाकर समाज में नफरत फैलाने की कोशिश करना सही नहीं है।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत को एक ऐसा देश बनाना चाहिए जहां धार्मिक सौहार्द प्राथमिकता हो।
भागवत ने यह भी इशारा किया कि कुछ लोग ऐसे मुद्दों को उछालकर अपनी राजनीतिक पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना था कि अतीत की गलतियों का बोझ लेकर समाज में द्वेष फैलाना आगे बढ़ने का रास्ता नहीं हो सकता।
साधु-संतों की तीखी प्रतिक्रिया
भागवत के इस बयान के बाद साधु-संतों में नाराजगी की लहर दौड़ गई। प्रयागराज में मौजूद एक संत ने कहा, "राम मंदिर हिंदू धर्म का गौरव है। इसे लेकर समझौता करना संभव नहीं है। अगर कोई इस मुद्दे को हल्का करने की कोशिश करता है, तो यह धर्म के खिलाफ होगा।"
वहीं, दूसरे संतों ने इसे समाज में सौहार्द बनाने की दिशा में सही कदम बताया। उन्होंने कहा, "हमें धर्म को राजनीति से ऊपर रखना चाहिए।"
सामाजिक नजरिया: क्या है जनता की राय?
भागवत का बयान सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है। कई लोगों का मानना है कि उनका यह बयान समाज में शांति और समरसता लाने का प्रयास है। वहीं, कुछ लोग इसे विवादों से दूर रहने की सलाह मान रहे हैं।
समाजशास्त्रियों के मुताबिक, धार्मिक विवाद अक्सर राजनीतिक फायदे के लिए उठाए जाते हैं, लेकिन भागवत का यह बयान जनता को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या इन विवादों से कोई स्थायी समाधान संभव है?
भागवत का संदेश: एक नई दिशा
मोहन भागवत का यह बयान केवल हिंदू-मुस्लिम विवाद तक सीमित नहीं है। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपनी ऊर्जा और समय को विवादों में झोंक रहे हैं, या फिर समाज में शांति और विकास के लिए प्रयास कर रहे हैं।
इस बयान से एक सवाल खड़ा होता है: क्या धार्मिक विवादों से हमारी संस्कृति मजबूत होती है, या यह हमें पीछे खींचती है? भागवत ने स्पष्ट किया कि अतीत की गलतियों को सुधारना जरूरी है, लेकिन उन्हें हथियार बनाकर समाज को बांटना नहीं।
निष्कर्ष: क्या यह बयान सही समय पर आया?
भागवत का यह बयान ऐसे समय पर आया है, जब समाज में धार्मिक विवाद तेजी से बढ़ रहे हैं। यह एक महत्वपूर्ण पहल है जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हमें कैसा भारत चाहिए।
यह बयान न केवल आरएसएस की सोच को स्पष्ट करता है, बल्कि समाज को एक नई दिशा देने की कोशिश भी करता है। ऐसे में अब यह जनता पर निर्भर करता है कि वह इस संदेश को कैसे अपनाती है।