श्रीलंका में इस्लाम का अपमान.बौद्ध भिक्षु को भेजा जेल
श्रीलंका में इस्लाम का अपमान: बौद्ध भिक्षु ज्ञानसारा को 9 महीने की जेल, जानें पूरा मामला
मुस्लिम समुदाय में भारी नाराजगी:
दिसंबर 2016 में, श्रीलंका के प्रमुख बौद्ध भिक्षु गैला गोडाट ज्ञानसारा ने एक मीडिया सम्मेलन के दौरान इस्लाम धर्म के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। यह टिप्पणी इतनी विवादास्पद थी कि देश के मुस्लिम समुदाय में भारी नाराजगी देखने को मिली। श्रीलंका की राजधानी कोलंबो की मजिस्ट्रेट अदालत ने इस मामले में ज्ञानसारा को दोषी ठहराते हुए 9 महीने की जेल की सजा सुनाई है।
मुस्लिम समुदाय का योगदान और प्रभाव:
श्रीलंका में मुस्लिम समुदाय की आबादी लगभग 22 मिलियन है, जो देश की कुल जनसंख्या का 10% है। इस्लाम श्रीलंका का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। हालांकि, श्रीलंका में धार्मिक तनाव अक्सर देखने को मिलता है, लेकिन इस बार अदालत ने सख्त कदम उठाते हुए संविधान के तहत सभी धर्मों को समान सम्मान देने का संदेश दिया है।
ज्ञानसारा का विवादास्पद इतिहास:
ज्ञानसारा का नाम इससे पहले भी कई विवादों में आ चुका है:
- 2014: ज्ञानसारा पर मुस्लिम विरोधी हिंसा भड़काने के आरोप लगे थे।
- 2019: उन्हें एक अन्य मामले में दोषी ठहराया गया था, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने उन्हें माफी दे दी थी।
- 2022: एक बार फिर उन पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़काऊ बयान देने का आरोप लगा, लेकिन इस बार उन्हें जेल भेज दिया गया।
कोर्ट का सख्त रुख:
कोलंबो अदालत ने कहा कि श्रीलंका का संविधान सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह के बयान समाज में अस्थिरता और घृणा फैलाने का कारण बनते हैं। ज्ञानसारा पर जुर्माना भी लगाया गया, जिसे न चुकाने पर एक महीने की अतिरिक्त सजा का प्रावधान है।
क्या ज्ञानसारा को जमानत मिलेगी?
ज्ञानसारा ने सजा के खिलाफ अपील दायर की है। हालांकि, अदालत ने अंतिम फैसला आने तक उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया है। उनका यह मामला यह साबित करता है कि श्रीलंका में अब धर्म से जुड़ी संवेदनशील टिप्पणियों पर कड़ी कार्रवाई की जा रही है।
पूर्व राष्ट्रपति का प्रभाव:
ज्ञानसारा को गोटाबाया राजपक्षे का करीबी सहयोगी माना जाता है। राजपक्षे ने उन्हें धार्मिक सद्भाव पर कानूनी सुधार के लिए एक टास्क फोर्स का प्रमुख भी बनाया था। लेकिन 2022 में राजपक्षे के इस्तीफे और देश छोड़ने के बाद, ज्ञानसारा का राजनीतिक संरक्षण खत्म हो गया।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस फैसले से श्रीलंका में धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि यह फैसला अल्पसंख्यक समुदाय को खुश करने के लिए लिया गया है।